बुधवार, 31 दिसंबर 2008

एक कैलेंडर और पलटा !

एक कैलेंडर और पलटा...साल बदला ...कुछ नया ...कुछ बदलनें का हल्का - सा अहसास ...कुछ नए और अचीन्हें का भाव__दर्द और टीस का रेला पीछे छूटता हुआ...चमकते हुए कुछ तारे ...कुछ अव्यक्त सा !
अभी शोर है ...आतिशबाजी है...जोश और जांबाजी है ...सुबह तीखा सूरज निकलेगा ...आँखें चौधियायेंगी ...संयम और साहस का इम्तिहान होगा...बाजार,सरकार,समाज और सहकार सभी दांव पर हैं__अपनी भूमिका पहचान कर सबसे आँखे चार करना होगा __न डर कर ...न डरा कर __इंसानियत के दम पर हर शै से मुकाबला करना hogaa !

नई यात्रा पर !

पार्टी टाइम !

न्यू इयर..!

विदा २००८ !



स्वागत २००९ !

रविवार, 21 दिसंबर 2008

ताज फ़िर हुआ रोशन !

आज... २१ दिसम्बर की शाम...ताज फ़िर रोशन हुआ __आतंक की कालिमा धोता हुआ __२६ - २७ -२८ नवम्बर की यादों के नक्श पोंछते हुए __शहर के गमजदा मिजाज में जिंदगी और जोश के नए रंग बिखेरते हुए __ताज फ़िर मुस्कुराया !
दर्द को सहलाना ...उसे गाना ...गाते - गाते नये जज्बे जगाना...जिंदगी के चलने का नाम है __मंजिलें और भी हैं ...आसमान और भी हैं ....जिन्दगी में सफर के मकाम और भी हैं !
__ये न समझें कि समूचे मुम्बई की धड़कन फकत ताज ही है...लेकिन फुटपाथ से लेकर आसमानी ऊँचाइयों पर जीने वाले मुम्बईकर के लिए ....आन - बान - शान ...तो ' ताज ' ही है ! __साहिर साहब ने ...' हम गरीबों का उडाया है मजाक ...' इस ताज के बारे में थोड़े लिखा था ...वो तो आगरा में है ! इस ताज पर तो हर मुम्बईकर को नाज है .
__शहर नए साल की ओर कदम बढ़ा रहा है...कड़वी यादें धुंधलायेंगी...नया सवेरा नई रंगत लाएगा !

अमिताभ जी !

December 21st, 2008 at 2:42 pm

अमिताभ जी !
आज आप स्मृतियों में बहुत गहरे ‘ माता जी ‘ के पास होंगे __यों तो हर दिन उनकी यादों के बिना नहीं बीतता होगा …पर आज यादें कुछ ज्यादा ही घनीभूत होंगी __आज सुबह अखबारों में ‘ तस्वीर ‘ देखी तो स्मृतियाँ कौंध गयीं __जब कर्वी ( चित्रकूट ) में रहते थे तो अक्सर सुनते थे कि…तेजी जी आयीं थीं …चित्रकूट…जानकीकुंड में …पंजाबी बाबा के यहाँ गयीं .__बांदा…के नाते आप और आपके परिवार से यह इलाका सहज अपनापा मानता है __बच्चन जी से बांदा में एक - दो मुलाकातें याद हैं __तब …१९७१-७२ में ग़ेजुएशन के दौरान बच्चन जी के दशर्न प्राप्त हुए

__कविता प्रतियोगिता में अपने को भी बच्चन जी से पुरस्कार मिला __कविता की किताब थी ...बाद में और प्रत्याशी किताब में उनके आटोग्राफ लेने लगे …दोस्तों ने मुझे भी कहा __मैंने कहा…’ मैनें स्मृतियों में आटोग्राफ ले लिया है ! ‘ बांदा में अक्सर केदार बाबू ( केदारनाथ अग्रवाल ) के सौजन्य से बच्चन जी के सहज …अति सहज रूप के दशर्न मिलते रहे …छवियाँ स्मृतियों में दर्ज होती रहीं ….जो अभी भी कल की बातें लगतीं हैं __तेजी जी को सीधे - सीधे कहाँ देखा …याद नहीं ….हो सकता है कि ना भी देखा हो और स्मृतियों के विम्ब इतने सघन हों कि यथार्थ को भी मात दे रहें हों !

__अमित जी ये ही स्मृतियाँ सत्य हैं …शेष सब निस्सार है __राम - कृष्ण - सीता - मीरा को न हमने देखा न आपने …सिर्फ़ स्मृतियों का पुल ही तो है जो हमें उनसे जोड़ता है …अविभाज्य बनाता है ! बच्चन जी …तेजी जी …सांसारिक रूप से बेशक अमिताभ बच्चन के माता - पिता हैं ….पर स्मृतियों के लोक में किसके क्या - क्या नहीं !

__आपको रेडियो में दिया अपना एक इन्टरव्यू याद होगा जिसमें आपने जिक्र किया था किहो सकता है कि यथार्थ में आप अपने पिताश्री की मृत्यु पर …न रो पाऊं ….क्योंकि वह आप कहीं व्यक्त कर चुके हैं …. पूरा इन्टरव्यू अभी भी मुझे याद है !

__समय के प्रवाह में स्थूल तो बह जाता है…सत्व ….स्मृतियों में हमेशा अमर रहता है !

__ आज न जाने क्यों….आपसे अपनापा फूट रहा है….मिले …एक या दो बार __ वीर अर्जुन के ….अनिल नरेंद्र की बेटी के शादी में….सन…रहा होगा…१९९३-९४ ….तब आपसे गपशप भी हुयी थी , बेटी श्वेता भी थी आपके saath ….बम्बई में तो आपके घर…प्रती क्षा के सामने से अक्सर गुजरते थे …जुहू जाते समय …एक बार घर भी गए थे….डॉ रामकुमार वर्मा का पत्र लेकर …जाया जी मिलीं __तब मैं __धर्मयुग में तह…१९८०से ८७ तक बम्बई रहा….हिन्दी एक्सप्रेस (शरद जोशी ) करंट ( डॉ.महावीर अधिकारी)…आपको जब कुली का दौरान जब चोट लगी तो करंट में
था …धर्मयुग में भारती जी के साथ का साल था __१९८४-८५ …!

__परिवार में सभी को यथायोग्य !

सादर __टिल्लन रिछारिया !

मंगलवार, 16 दिसंबर 2008

बंबई ...सुबह चार बजे !

इलाका भुलेश्वर का ...सुबह से गुलजार...सुबह...यानी चार-सादे-चार बजे ! घड़ी-घंटों और शंख घ्वनि की गूंज...सुबह से बम्बई शुरू...झटके से उठिए वरना नल चला जाएगा ...नल तो वहीं रहेगा पानी चला जाएगा...बिना नहाये मन्दिर मैं गुजारा कैसे !__बंबई मैं तो हर चीज के लिए लाइन लगती है...यह बात समझ में आ चुकी है कि लाइन में लगे बिना यहाँ कुछ भी पाना कितना मुश्किल है...पहला चरण पूरा...दूसरे में हनुमान जी को हाजिरी...अब सवारी सड़क पर है...घंटों की टन-टन और महमहाते फूलों की खुशबू से भरी फूलवाली गली से गुजर गुजर कर अब सवारी सड़क पर है ...खान-पान की दूकानें खुल चुकी हैं...गरमागरम दूध और ताजी जलेबियाँ ...वादा पाव...आलू-पूरी...और तरह-तरह के स्वाद आपकी राह छेंकने की भरपूर कोशिश कर रहे hain ...पर क्या मजाल कि आपका दिल मचल जाए__मंगलवार और शनिवार तो हनुमान जी की कृपा से प्रसाद स्वरूप इतना मिष्ठान मिलता है कि फ़िर मन ही न करे और रोज...आज अभी भी तो हनुमान जी ने प्रसाद में बरफी दी है...हाँ...कुछ फरसाण हो जाए तो बात अलग है __बम्बई में नमकीन-तत्व को फरसाण बोलते हैं__हाँ...हनुमान जी मिठाई तो खिलाते थे पर मेहनत भी करवाते थे__चढावे में जो रुपये-पैसे चढ़ते ...उन्हें ....रूपये-आठ आने-चार आने और दस पैसे ...अलग-अलग करने होते....तो मंगल और शनिवार को कभी कतराते तो कभी अपने को दांव पर लगा ...मुद्रा निस्तारण कार्य सम्पन्न कर हनुमान जी और महंत जी का आर्शीवाद पाते ! __कभी ऐसा भी हुआ कि जब डेढ़ - दो रूपये बचे तो तुरत हनुमान जी को समर्पित कर देते ....इस आगाह के साथ कि अब आप ही सभालना ___और...घंटे-दो-घंटे में ...भाई साहबनुमा कोई ऐसा शख्श आता जो खूब खिलाता-पिलाता ( पिलाता को कुछ और पीना...पिलाना न समझें ) और जाते-जाते तीन बार पूछता ....और सब टीक हैं ना __अगर चेहरे पर जरा भी चाहत दिखाई दी तो __बीस-पचास की प्राप्ती अलग होती थी__तबके बीस रूपये का मतलब समझते हैं आप__तब बस का न्यूनतम टिकट 30 पैसे और लोकल ट्रेन का 25 था__तीन- साढ़े-तीन में बढिया भोजन और इतने मी ही सिनेमा का टिकट...फस्ट क्लास का....लोकल का पास हो और जेब में दो रूपये ....राजाबाबू बन घूमों बम्बई...! तब बीस-पच्चास की वकत hotee thee ....सात सौ तो तनख्वाह थी अपनी तब ... फ़ोर फीगर सैलरी का के सम्मान का ज़माना था ___मैंभी कहाँ चिल्लरों के चक्कर उलझ गया___वैसे खेल तो सब इन्हीं चिल्लरों के लिए हैं ! __बिन चिल्लर सब सून__सोचा था कि आपको आज अपने रास्ते से ....एक्सप्रेस टावर ले चलूँगा ....पर अब आज रहने देते हैं __कल चलिएगा ....थोडा फुर्त्ती से तैयार होइएगा !!!!!

शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008

जिन्दगी ...जंग ! तब की बम्बई न पहचाने इस रंग को !

इन दिनों बम्बई का मौसम …खुशनुमा और खनक भरा रहता है.__शाम हल्की सर्द …समन्दर के किनारे - किनारे चलें तो नमकीन झोंके खुमार में लें जाएँ …अमूमन ये झोंके शाम को साथ रहते ही थे !…जब अकेले निकालता था …एक्सप्रेस टावर से तो …एयर इंडिया की बिल्डिंग से ही समंदर का साथ पकड़ लेता था…आसमान पर होती सिंदूरी आभा …सांझ …सांवली होती हुई …. ‘ नेकलेस ऑफ़ बॉम्बे… ‘ दमक उठता… ! __जितना पी सकता था उतना पीता था__सांझ का सौन्दर्य !…ओबेरॉय के सामने से होते हुए एकदम किनारे तक …फ़िर समंदर के साथ - साथ … चर्चगेट से मरीन ड्राइव होते हुए …चौपाटी …चौपाटी तो सांझ ढलते ही रंग - बिरंगी रोशनियों की फुलवारी बन जाती है __शहर के बीच लोगों का सैलाब__पर इधर अपने और अपनों में खोये लोग ….कहीं दो बदन एक जान …कहीं सिर्फ़ हाथों में हाथ …कहीं कोई …मेले में अकेला…कहीं कोई …उलझनों का मेला ….! कहीं __ जोश , मदहोश , अफसोश …कैसे - कैसे लोग …कैसे -कैसे रंग __किसी की जिंदगी जंग ! …जी नहीं …तब के दौर की बम्बई ने जिंदगी को तमाम रंगों से सराबोर किया था __ पर जंग का रंग क्या होता है न कोई जानता था …और ना पहचानता था ! यहाँ तो तब ‘स्ट्रगल’ नाम का एक जीव हुआ करता था ….जो हमेशा ….मुस्कुराते और गुनगुनाते मिला करता था __मुसाफिर हूँ यारो…और आबोदाना ढूंढते हैं …! अजीब सी रूमानियत भरा होता था तब….स्ट्रगल…! !

गुरुवार, 11 दिसंबर 2008

बॉम्बे की बात ही अलग है !

बम्बई में अगर रहने का ठिकाना आराम से मिल जाए और यहाँ की तेज रफ़्तार जिंदगी में दिल रम जाए तो इससे बढ़िया और कोई शहर नहीं . तो ठिकाना तो मिल गया और दिल भी रम गया __दिल तो पहले से ही रमा था इस शहर के साथ __कभी सपनों में तिरता था यह शहर...मेरे दिलफरेब उस्ताद ने इस शहर की जो तस्वीर मेरे दिल - दिमाग में उतार रखी थी उसके मुताबिक ...बम्बई की सड़कें...क्या बात हैं__इतनी चिकनी कि यहाँ थूंको...तो मीलों फिसलता चला जाए...और इमारतें इतनी ऊँची कि __लोग ऊपरी मंजिल पर खड़े हो कर सूरज से सिगरेट जला लेते हैं ...बॉम्बे की बात ही अलग हैं ...दलीप कुमार , मीना कुमारी , पिरान ,जानीवाकर ,धरमिंदर ,महमूद ...एक - से एक बड़ा एक्टर ...अजब -गजब का खेल करतब ...जीवन का मेला है...क्या गजब का खेला है ...!__बम्बई का यह रूपक मेरे जहन में बचपन से चस्पा था ...यह रंग भरा था उस्त्त्द खलीफा ने __ये जनाब टेलर मास्टर थे और कर्वी (चित्रकूट) में हमारे घर के बाहरी हिस्से के एक कमरे में अपनी दूकान चलाते थे...जनाब पक्के जुमालेबाज थे और दुनियादारी के हर इल्म में माहिर...क्या मजाल कि आप उन्हें किसी मामले पर शिकस्त दें पायें...एक वाकिया है __राष्ट्रपति जाकिर हुशैन के इंतकाल की ख़बर ट्रांजिस्टर पर आ रही थी...'क्या हुआ ...क्या ख़बर है...'.... मैनें कहा __डॉ जाकिर हुशैन साहब का इंतकाल हो गया हैं ! '.....हाँ....यार बड़ा उम्दा डौक्टर था....' मैंने कहा ....खलीफा ....वो इंजेक्शन - आपरेशन वाले डौक्टर नहीं थे !'....अमां यार तुम कल - कल के लड़के क्या जानों ...बड़ा उम्दा डौक्टर था ...! '....अपने तर्क की मजबूती के लिए खलीफा ने कम-से-कम अपने आधा दर्जन रिश्तेदारों के नाम मय शहर और पूरे पते सहित गिना दिए.__इस बात पर मैंने उस दौरान __सबसे बड़ा तर्क__शीषर्क से लघुकथा लिखी थी !....बहरहाल ....बॉम्बे ...दिलकश है....लाजवाब है !

सोमवार, 8 दिसंबर 2008

मन्दिर में रहना...यानी आधी सधुक्कड़ी !

खूबसूरत ठिकाना मिला __ग्राउंड फ्लौर पर __हनुमान जी बिराजे थे__फस्ट फ्लौर पर __महंत जी की बैठक __सेकेण्ड फ्लौर पर __साधू - संतों का डेरा __ थर्ड फ्लौर पर हम लोग ...दरअसल यह जगह उन छात्रों के लिए सुरक्षित थी जो बाहर से यहाँ पढ़ने आते थे ...जहाँ हमें ठिकाना मिल गया है.__आते-जाते हनुमान जी की नजर ( हालांकि वो सर्वज्ञ हैं ) बच बचा लिए तो महंत जी ...'कबी आया ...किधर था ' फ़िर संगी-साथियों को जवाबदेही __'कहीं भी जाने का ...बता कर जाने का ....कबी आयेगा बराबर बताने का ....कुछ माँगता ...बताने का....जास्ती परेसान होने का नई ...'मन्दिर का रहना...यानी आधी सधुक्कड़ी__नहाना तो रोज पडेगा__देर तक सोने का सवाल ही नहीं ...सुबह चार - साढ़े - चार से चारों और घंटों और शंख बजाने की आवाजें...फ़िर हनुमान को हाजरी भी तो देनी है . कुल मिलाकर मन्दिर में रहने का अनुशासन...एक अलग तरह का आनंद !

रविवार, 7 दिसंबर 2008

बम्बई ! सात दिसम्बर 1980

सात दिसम्बर १९८० __२८ साल पहले आज के ही दिन… आज की मुम्बई ….और तब की … बंबई की दहलीज को स्पर्श किया था .नरीमन पॉइंट का ‘एक्सप्रेस टावर’ बना था नौकरी का ठिकाना और शुरुआती कुछ दिन ‘कल्याण’ से आना-जाना रहा…बाद में…कालबा देवी मन्दिर इलाके में ‘भूलेश्वर के पंचमुखी हनुमान मन्दिर’ में रहने का ठिकाना जम गया. यह मन्दिर फूलवाली गली के ठीक बगल में है.__यह सब अपने सर्व साधक ‘चित्रकूट’ नाम के विजिटिंग कार्ड का असर था. इससे सौभाग्यशाली विजिटिंग कार्ड मुझे अब तक नसीब हुआ . …एक्सप्रेस टावर के दूसरे माले से समंदर की लहरें गिनते-गिनते एक दिन ख़याल आया कि…चित्रकूट वाले सत्यनारायण शर्मा जी अक्सर चर्चा करते हैं __हमारे एक मामा वहाँ हैं…एक वहाँ …और एक भूलेश्वर के पंचमुखी हनुमान मन्दिर के महंत !…कहाँ है यह मन्दिर…खोजबीन की और पता करते-करते शाम को हनुमान जी को प्रणाम कर … महंत जी का ठिकाना पता कर… सहमते-सहमते चढने लगे सीढियां __सामने बुजुर्ग …. ‘मुझे सत्य…नारायण…मैं…चित्रकूट…से आया …’__कौन सत्य नारायण…मैं चित्रकूट को जानता हूँ आइये ‘….प्रणाम कर बैठा …आने का सन्दर्भ और कारण बताया ….जिस सहजता और आत्मीयता से महंत जी ने आश्रय और सत्कार दिया वह इस महानगर में मेरे लिए बड़ा संबल बना.

शुक्रवार, 28 नवंबर 2008

ओ...माई बॉम्बे !

गुजरे तीन दिन ...बम्बई ( मुम्बई ) झुलस रही है __सपनों की देवी __दुःस्वप्नों की देवी बन गयी __वी.टी स्टेशन , मेट्रो सिनेमा , नरीमन पॉइंट , गेट - वे - ऑफ़ इंडिया ... ताज होटल ... चौपाटी चरम आतंकियों के निशाने बने रहे ...गुजरे तीन दिन ...२६-२७-२८ नवम्बर २००८ के ...ये तीन दिन... मुम्बई महानगर के बाशिंदों और इसे दिलो-जान चाहने वालों के लिए किस कदर रुलाने और तड़पाने वाले रहे ...! इस दर्द को वो ही समझ सकता है ...जिसने इस शहर की आबो - हवा में दो - चार ऋतुचक्र गुजारे हों !...इस नाचीज को ... इस दिलफरेब शहर ने ...एक जमाने में ...अपने आँगन में चंद साल गुजारने का खुशगवार मौका दिया था !

१९८० के दिसंबर के शुरुआती दिन थे...जब इस शहर की हिलोर ने अपने लपेटे में लिया __इलाका था__नरीमन पॉइंट __कम्पनी__इंडियन एक्सप्रेस __पत्रिका __हिन्दी एक्सप्रेस __सम्पादक __शरद जोशी __बैठक __एक्सप्रेस टावर ...दूसरा माला ....मेज से कागज़ फिसले तो गया सीधे समंदर में !...बाईं तरफ.... ओबेराय होटल का स्वीमिंग पूल !!...वही ओबेराय होटल ... जिसकी दिल दहलाने वाली तस्वीरें ...तीन दिनों से दिल - दिमाग को मथ रहीं हैं !...कहाँ गयी वो सुकूनपरस्त बंबई !

१९८० से ८७ तक मुम्बई में गुजरे मेरे खुशफहम दिन ...तमाम जोर देने के बाद इस बात की याद नहीं दिला पा रहे कि कभी ...खौफ का कोई कतरा भी मेरे जहन से गुजरा हो ।...सुबह खिलती खिलखिलाती , दोपहर जवान होती , शाम खुमार में डूबी , रात चढ़ते अल्हड ...और गहराते - गहराते... नशीली ... कुछ बहकी - बहकी सी ...और देर रात जब आपके आसपास सब अनजानें हों तो __आपकी हमदर्द !__आपकी अपनी ! ! आपकी अनन्य ! ! !__आपकी संगिनी ...आपकी रक्षा - कवच __ मुम्बई के इस स्वरूप के साक्षात्कार के लिए जरूरी है ...आस्था के चरम तक जाना और अपने अहं का तिरोहण !__मिटा दे अपनी हस्ती को ... ! साधना का यह पंथ कठिन नहीं ...बहुत आसान है __सिर्फ़ अपनी चाहत पर अपने अहं को कुर्बान करना होता है ...और सरल भाषा में बताएं __' हक ' के बजाय ' चाहत ' पर टिकना होता है __अपना विश्वास है __मनवांछित फल प्राप्त होता है !...कभी आजमा कर जरूर देखें ।

जिस मुम्बई ने अपने आँगन में ....हर किसी को अपने सपने रोपने की खुलेदिल आजादी दी ...उस मुम्बई का दुश्मन कौन है ?...अपनी बाँहें पसार कर देश - दुनिया की हर नस्ल - ओ - कौम को गले लगाने वाली मुम्बई का ये नया जागीरदार कौन है ? कौन है ...' सपनों की देवी ' को कुनबापरस्ती की जंजीरों में जकड़ने वाला कौन है ?...जो भी हो ...समय की रफ़्तार के आगे टिका कौन है ...!

तीन दिनों तक ...दहशत के जिस तूफ़ान ने मुम्बई के दिल - दिमाग और जज्बे को तार - तार किया उसके नक्श शायद ही कभी इस शहर के ख्यालों से मिट पायें । दिन गुजरेंगे , हालत बदलेंगे , शहर फ़िर चाहेकेगा ......!

गुरुवार, 20 नवंबर 2008

बॉम्बे...!




टूटी सपनों की बैसाखियाँ , तबियत हो गई हरी !

यार हमें ...जब से मिली बॉम्बे की नौकरी ! !


वाह !


इन दिनों ... मुस्कराइए मत ...!

मौसम सर्द है ...और सर्द है आसपास का माहौल __अजब - सी कशमकश ...अजब - सी बेचैनी ... अजब -सी साजिश __हर किसी को अपने इर्द - गिर्द होती महसूस हो रही है...हर कोई परेशान इस बात से है कि सामने वाले की मुस्कान या हंसी उसके ही कत्ल का सामान है । जब ऐसा आपको भी लगाने लगे तो ...? __इसका इलाज कहीं नहीं है... अगर है तो केवल आपके पास !

रविवार, 2 नवंबर 2008

कुंबले...कोटला...और गुड बॉय !

अनिल कुंबले ...पिछले एक-दो दिनों से यह नाम अखबारों-टीवी चैनलों ( खासकर चैनलों ) में खिंचाई और छींटाकसी का निशाना बना हुआ था __आज उछाल पर आ गया __आस्ट्रेलिया के साथ टेस्ट ड्रा होते ही कुंबले ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास घोषित कर दिया __१३२ टेस्ट...६१९ विकेट की शानदार उपलब्धि और डेल्ही के कोटला में ही पाकिस्तान के १० विकेट अकेले अपनी झोली में डालने के करिश्में की यादों के साथ वे अब सिर्फ़ क्रिकेट की रिकार्ड बुक में तेजस्वी सूर्य-सा चमकेंगे _वन-डे से वे पहले विदाई ले चुके हैं _आई सी एल में वे खेलेंगे ...और नागपुर वे ज़रूर जाएँगे ...गांगुली को विदाई देने । कहा जा रहा हैं कि...एक युग का अंत हो गया _जो आज था वो कल हो गया...जो आज है वो कल हो जायेगा ...और जो कल ...कल आयेगा ...ज़रूरी नहीं कि आप की उम्मीदों का ही कल हो _बेहतर है कि बीते कल का सम्मान कर ...और...जो आने वाले कल है ...उस पर इतमिनान कर .

कुम्बले...कोटला...गुड बॉय !


शनिवार, 11 अक्तूबर 2008

और एक दिन ...बंबई !


चलते -चलते एक दिन सारे नज़ारे बदले- बदले से लगने लगते हैं .लगता है जैसे ये हमारी दुनिया नहीं है._और जो दुनिया मिलती है उसे अपना मानना पड़ता है._जो सच है ,हकीक़त है वो तो है _जो बीता है ,वो बीता है _वो आज नहीं है._चलते-चलते बदलते जाना ही क्या जिन्दगी है?_क्या यही हकीकत है? _बड़ा कठिन है अतीत की गलियों से बहार निकल पाना ._किशोर वय के बाद के सिलसिले कब स्कूल के गलियारों से होते हुए कॉलेज और डिग्री कॉलेज के आँगन से बाहर निकाल _सन १९८० के दिसम्बर में तब की बंबई और आज की मुम्बई के नरीमन पॉइंट इलाके में खड़े _एक्सप्रेस टावर के दूसरे माले में _शरद जोशी _ के सामने खड़ा कर गए ...अहसास हुआ तो पाया_
टूटी सपनों की बैसाखियाँ तबीयत हो गयी हरी ।
....................जब से मिली बॉम्बे की नौकरी । ।
_पहली नौकरी थी _इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप ऑफ़ बॉम्बे की साप्ताहिक पत्रिका _हिन्दी एक्सप्रेस और पहले संपादक थे _शरद जोशी ... जानते हैं आप शरद जोशी को _ये प्याज़ वाला शरद जोशी नहीं है _ये ...ये जो है जिंदगी वाला शरद जोशी है...उन दिनों ...दो ही जोशी धूम पर थे _एक _मनोहर श्याम जोशी ...हम लोग वाले और दूसरे व्यंग वाले शरद जोशी । _उस दिन ट्रेन जब बॉम्बे के वी टी रेलवे स्टेशन पर पहुँच रही थी तो मेरे हाँथ मई जो अखबार था उसकी हेड लाइन थी _शरद जोशी गिरफ्तार _गिरफ्तार दरअसल प्याज़ वाले शरद जोशी हुए थे._

रविवार, 5 अक्तूबर 2008

परिवर्तन...

सब जानते हैं पर यकीन करना मुश्किल होता है कि चीजें इतनी तेजी से कैसे बदल जाती हैं। यादों के फीते से नापने पर तो ऐसा लगता है जैसे सब अभी-अभी ही तो चल रहा था___फासला इतना कैसे हो गया। ऐसा ही होता है._जिस रामलीला के आनंद सागर में बालमन और बालपन कुलांचें भर रहा था वो कब _लक्ष्मण से परशुराम की भूमिका में आ गया पता ही नहीं चला । _पिता के सामने जिस भूमिका में उनसे तकरार होती थी अब वही परसुराम की भूमिका स्वयं करने की चुनौती सामने आयी। _लक्ष्मण के रोल के बाद _ मेघनाथ ,परशुराम आदि की भूमिका रामलीला मई कीं._पिता जी के रोल होते थे _दशरथ ,परशुराम,बाली,अंगद ,सुतीक्षण आदि._वैसे तो रामलीला का चैलेन्ज कुछ एइसा होता है कि कब आपको क्या न बनना पड़ जाए_एक बार मुझे तो सूर्पनखा बनना पड़ा _हुआ ये कि जिसे सूर्पनखा बनना था पहले उन्हें मारीच बनना था और वो मारीच के रोल के लिए जोकरों वाले कपड़े पहनने की जिद कर रहे थे ,जिद पुरी नहीं हुई तो गोल हो गए._फ़िर क्या बने सूर्पनखा । _ लक्ष्मन आदि की भूमिका तो बड़े मासूम मन की होतीं हैं _चारो तरफ़ ...सौंदर्य,वैभव,आत्मीयता ,श्रद्धा का भावः होता है। एक लय जैसे होती है_आप अपने आप में नहीं होते ,आप जहाँ होते हैं ...जिस पात्र में होते हैं उसी में लीन होते हैं_ऐसे में कोई विचार ही नहीं उपजता _सर पर सोने का ताज हो ,राजाओं से लिबास और इतना सारा प्यार और सत्कार और क्या चाहिए .__सच जीवन मे इसके बाद और कुछ चाहने की जरुरत ही महसूस हुई ._सब कुछ चाहने पहले ही मिलता चला गया .

सोमवार, 29 सितंबर 2008

धनुष यज्ञ.

तेहिं क्षन राम मध्य धनुष तोरा ..
धनुष राम तोड़ते हैं._परसुराम आते हैं_चरों ओर हाहाकार मच जाताहै।
कहो जनक क्या कारन है,भारी भीड़ भाड़ क्यों है _
अभी शोर -सा कैसा था,अब वीरों मे छेडछाड़ क्यों है ?
जनक के कारन बताने पर परसुराम को भारी क्रोध आता है _
ऐ जनक बता तू शीघ्र मुझे ,यह धनुहा किसने तोडा है
किसने इस भरे स्वयंवर में सीता से नाता जोड़ा है
इसीबीच राम _नाथ शम्भू धनु भंजन हारा,होइहैं कोऊ इक दास तुम्हारा _कहकर परसुराम को प्रणाम करते हैं पर परसुराम जी आवेष मे कहते हैं _
सुनो राम सेवक वो है ,जिसका सेवा पर ही चित है
बैरी का जो काम करे,वो काट डालने काबिल है
_सुनहु राम जो शिव धनु तोरा सहसबाहु सम सो रिपु मोरा...
_सो बिलगाई विहाय समाजा नतु मारे जैहैं सब राजा
लक्षमण की शरारत से परसुराम का गुस्सा भड़क जाता है वे _
देख ओ रजा के लड़के ,तू मुह को नहीं सभालता है
मुझ जैसे क्रोधी के सामने ,क्यों आखें लाल निकलता है
श्री महादेव का महा धनुष ,जो पुरी पृथ्वी मैं जलहर है
इतना बड़ा प्रचंड चाँद यूं ही धनुहीं के समदर है
_तकरार तेज होती है _
_अरे नादान बालक तू कौन है ?
_सारा ब्रम्हांड सर पर धरे तू कौन है?
_ मैं छतरियों का काल हूँ
_तो मैं शास्स्त्रशाल हूँ
_अभी तू नादान बालक सुकुमार है
_नहीं ये बालक वीर रघुवंश कुमार है
_दूध मुहे बड़ों से हंसी छोड़ ,यह हंसना तुझे रुलाएगा
कर देगा दांत अभी खट्टे ,फरसा ओह स्वाद चाखायेगा
लड़के महलों मैं खेल -खेल क्योँ मुझसे लड़ के मरता है
मेरी क्रोधानल के आगे, किसलिए लड़कपन करता है
_राम की विनम्रता और एक बार काल से भी लड़ने की ललकार के बाद परसुराम राम के प्रति अपना आदर भाव व्यक्त करते हैं _राम रमापति कर धनु लेहु ,खैंचहु चाप मिटे संदेहू ....
__कर्वी की यह रामलीला लगभग १५०-सालों से उपर का सफर कर रही है._पहले तो परिवार मैं यह होता था की रामलीला अवसर पर सबलोग शामिल होते थे पर अब कहाँ ....जानें कहाँ गए वो दिन __ये जो यादें मैं आप से जी रहा हूँ ये लगभग ४०-४५ साल पहले यानि सन ६०-६५ के दौर की बातें हैं
__कर्वी की रामलीला अनुथानिक और संवाद प्रधान होती थी। दसहरा को रावण बध आगे कुछ दिन बाद राम की राजगद्दी । आगे के प्रसंग नहीं उठाते ...राजगद्दी के बाद नाटकों का सिलसिला चलता है । उस दौर मैं हमलोग वीर अर्जुन और कृष्णावतार [राधेश्याम कथावाचक के ] जरुर खेलते थे। रामलीला मैं राम,सीता के प्रात्र तो बच्चे [१३-१४ साल तक] ही निभाते और महिला पात्रों काम पुरूष करते.





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शनिवार, 27 सितंबर 2008

थोड़ा कुछ अपने बारे में...

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर आलोकित चित्रकूट से कोई सात किलोमीटर उत्तर एक छोटा-सा क़स्बा _कर्वी नाम से है _जो अब _ चित्रकूट धाम कर्वी के नाम से जाना जाता है ._यही छोटा-सा क़स्बा कर्वी अपने बालमन और बालपन की क्रीडा भूमि रही और जो पहला प्ले-ग्राउंड मिला वो __रामलीला का ही था._शुरूआती दिनों शत्रुघ्न की भूमिका मिली बाद में लक्ष्मन की ._आलम यह था कि... धनुषयज्ञ की लीला में पिताजी [पुरुषोत्तम लाल रिछारिया] परशुराम की भूमिका में होते और ग्रैंड-फादर [पं प्यारेलाल रिछारिया ]_पेटुराजा के चरित्र में _क्या गजब का रूपक सजता _जबकि लिहाजन हम लोग शायद कभी-कभी ही आमने- सामने पड़ते हों ._उत्तर भारत के परिवारों में तब के दौर के बाप-बेटे के बीच संवाद के अवसर कम ही आते थे और पिता तो अपने पिता के सामने अपने बेटे से कम ही लाड-प्यार जताते थे । अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि _कैसा होता रहा होगा परसुराम लक्ष्मन संवाद ._चौदस की रात होती है धनुष यज्ञ की लीला कर्वी में .
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शुक्रवार, 26 सितंबर 2008

यादों के सिलसिले...

यादों के सिलसिलों के मुहाने पर अपने होंने का अहसास _ यह अहसास भी अपने आप में अजब-सा अहसास है_अजब -सी दस्तक_ अजब-सा खुमार_कोई नाम है इस अहसास का या सब अनाम है__

नाम_ टिल्लन [ जो कानों ने सुना] जो आंखों ने देखा _ शिव शम्भू दयाल रिछारिया । आसपास जो आबोहवा और खनक थी उसमें _रंग, राग,रस,कवित्त,संगीत और रामलीला का खासा असर था जो अपने ऊपर भी छाता चला गया._जब कारवां आगे बढा तो ये ही सब जीवन के सफर में पतवार बने और जीवन का आधार भी.

गुरुवार, 25 सितंबर 2008

चित्रकूट घाट पर...

चित्रकूट के घाट पर इन दिनों संतों के मेलों और संगतों के आलावा रामलीलाओं की भी खासी धूम मची है .देश _खासकर उत्तर भारत मैं इन दिनों पितृ-पक्ष के उतरते-उतरते रामलीलाओं का शुभारम्भ हो जाता है._मेरे लिए ये दौर यादों का ज्वार लेकर आता है._जबसे कुछ भी याद है तो याद के रूप जो पहली याद है वो है रामलीला के शुरूआती दिन_ताडका-बध के लिए मुनि विश्वामित्र राजा दशरथ से राम और लक्ष्मन को मँगाने आए हैं और दशरथ मना कर रहे हैं_
--मांगिये मुनिराज यज्ञ रक्षा के काज
चाहे सेना गज बाज चाहे धन धाम को
खाडे शमशीर वीर बांके रणवीर धीर
योधा सुगम्भीर खल दल के संग्राम को
आप से दयानिधान इतना ही मांगता हूँ

मांगो जो हो मांगना पर न मांगो रामचंद्र को
दशकों पहले की ये बातें आज भी बीते कल तरह ताजा हैं और ताजा हैं वो सारे दृश्य और वे अनुभूतियाँ जो मेरी अपनी जिन्दगी के सफर का आगाज बने.

रविवार, 21 सितंबर 2008

पहली नजर

आधी छोड़ पूरी को धावे, पूरी मिले न आधी पावे।