गुरुवार, 23 सितंबर 2010


सोमवार, 20 सितंबर 2010

रविवार, 19 सितंबर 2010

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रविवार, 29 अगस्त 2010

शनिवार, 28 अगस्त 2010

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शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

मीर रंजन ...


एक सपने का हकीकत में उतर आना ...

मीर रंजन नेगी का खबरों में उभर आना ...

इंतज़ार है ...

बुधवार, 9 जून 2010

शनिवार, 29 मई 2010

मंगलवार, 25 मई 2010

क्या खबर है..


क्या खबर है...!

ब्लॉगर खुल नहीं रहा

लिख रहा है ...पर कुछ पढ़ा नहीं ...

आइये देखें तो...

शुक्रवार, 21 मई 2010

गुरुवार, 20 मई 2010

एक जैसा कोई नहीं...


एक जैसा दूसरा होता ही नहीं ...दीखता बेशक ...जैसे ...राम और श्याम में ' दिलीप कुमार !

फिर ...

अमिताभ और सचिन की क्यूं तुलना !

...अब शशि थरूर ...सबसे आगे है ...

...तो क्या ...सब से ज्यादा हसबैंड किसके ...सबसे ज्यादा बेटे किसके ...

...मीडिया यह भी तो बता ...

...सब से किफायती जीवन जीने वाला राईस कौन ?

महानता : सन्दर्भ सचिन...


महानता सिर्फ एक बार का हासिल नहीं . यह निरंतर चलने वाली एक प्रक्रिया है !...सन्दर्भ : सचिन तेंदुलकर ! कल मैंने अपने आप से कहा था ... ' बड़ा बनाना है तो अपने आप से बड़ा बनो ' '...और कभी भी अपने आप से बड़ा दिखने की कोशिश मत करो ' ...महानता दिखनी नहीं , महसूस होनी चाहिए !

सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

बांदा के राजू उर्फ़ ' नटवर का चौमासा '

राजू मिश्र उर्फ़ ( बांदा की पत्रकारिता का ) नटवर लाल !...सन १९७२-७३-७४-७५ के सालों वाला बांदा !...उत्तर प्रदेश का साधारण सा एक जिला ... तब इसी जिले में शुमार होते थे ...चित्रकूट...राजापुर ( तुलसी दास का जन्मस्थान )...अब चित्रकूट खुद जिला बन गया है । इतिहास की तमाम करवटों के बीच हम पकड़ते हैं पिछली सदी के आख़री तीस साल !!

१९७०-७१-७२ का बांदा ...कवि केदार का बांदा ...चारो ओर धूम थी कवि केदार की !...कवि केदार कितने बड़े कवि थे ...ये तब हमलोग नहीं जानते थे ...हाँ इतना जरूर समझते थे कि जब इनसे इतने बड़े - बड़े कवि लोग मिलने आते हैं तो ये भी उतने बड़े तो होंगे ही ।...बाबा नागार्जुन , हरिवंश रॉय बच्चन , अमृत रॉय ...
बांदा में कवि केदार की अगुआई में तब ' प्रगतिशील सम्मलेन ' हो चुका था ...देश भर के तमाम साहित्य प्रेमी बांदा की मिट्टी के आतिथ्य का स्वाद ले चुके थे । कविता का एक नया तेवर अवतार ले चुका था ....कवि केदार के ओजस्वी व्यक्तित्व का असर समाज की सभी इकाइयों पर पडा । ...पत्रकारिता पर भी भरपूर असर पडा । कसबे के ...मध्ययुग , बम्बार्ड , विश्व प्रभाकर ...जैसे अखबारों में अक्स दिखने लगा ...और विकसित होने लगी पत्रकारिता में नयी पौध ...जन-चेतना की धार ...इसी धार और रफ़्तार से हम जैसे तमाम निकले ....! राजू मिश्र बांदा की इसी दौर की उपज हैं । ...बहुत घिसे गए ...बहुत रगड़े गए...बहुत तराशे गए ...जेब में छदाम नहीं लेकिन रुका कोई काम नहीं ...!
ये दौर ' रविवार '...' दिनमान ' ...' धर्मयुग ' जैसी पत्रिकाओं का उत्कर्ष काल था । ...जागरण,आज,भारत और बाद के दौर का...अमृत प्रभात इलाके के प्रभावी अखबार थे । ...कवि गोष्ठी वाले हमलोग पत्रकारों के लिए दोयम दर्जे के लोग हुआ करते थे ...टाइम्स ऑफ़ इंडिया के ...बी डी गुप्ता की तूती बोलती थी । ...ए के सहगल और रामेश्वर गुप्ता का एक धडा था ....हम लोग संतोष दादा गैंग के थे...हर जगह पिले रहते थे ...बम्बार्ड के विक्रमादित्य का खासा रुतबा था ....बड़ा चक्रव्यूह था ...लेकिन इसमें कोई अभिमन्यु कभी मारा गया ...क्योंकि यहाँ की महाभारत के भीष्म और कृष्ण की मुखर भूमिका में हमेशा कवि केदार हमेशा तत्पर रहे .