मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

जीने के कुछ और बहाने खोज !

ये सब मुसाफिर हैं !

मौसम कुनकुना है ...दरख्तों पर कोंपलें फूट रहीं हैं , धूप चटख और हवाएं कभी खुश्क तो कभी नरम-नरम . प्रकृति रंग बदल रही है __ऐसा ही बदलाव कुछ अंतर मेंभी हो रहा है__ वैसे आज के इस दौर में इस तरह के बदलावों के कुछ मायनें होते नहीं हैं __पता नहीं किस दौर के आदमी हैं आप ! अपनें इर्द -गिर्द देखिये बहुत तो सर पर पैर धरे और कोई तो किसी और के सर पर पैर धरे भाग रहा है __

भगा जा रहा हूँ
भगा जा रहा हूँ
नहीं जानता हूँ ...
कहाँ जा रहा हूँ !

अपनीं रौ है ...
और अपना रास्ता
औरों से अपना क्या वास्ता !!

जीवन के सफ़र में वफ़ा और वेवफा दोनों तरह के मुसाफिर मिलेंगे __जनाब जब जानते हैं कि ....ये सब मुसाफिर हैं और ...आलय हो या कार्यालय ...मुसाफिरखाना हैं ...तो फिर इनसे राग और अनुराग कैसा !__बस उतना ही उपकार समझ ले जो जितना साथ निभा दे !! मन को साकार खूंटे से खोलकर निराकार के खूटें से बांधें ....वैसे बहुत बेहतर है ' मन को पिंजडे में न डालें और मन का कहना भी न टालें !