फागुन की यह पूर्णिमा और तुम्हारा संग !
बिना डोर मन उड़ रहा जैसे कोई पतंग !!
अधिक देर सुलगे नहीं दहके हुए गुलाब !
जाने फ़िर कब थम सका मधुगंधित सैलाब !!
रंगों का तूफ़ान है गोरे गाल गुलाल !
भौचक्की तू क्यों खड़ी गुलमोहर की डाल !!
जाने दे फ़िर आयेगी होली अगले साल !
अपने मन का कर लियो तू भी मेरा हाल !!