गुरुवार, 12 मार्च 2009

...और तुम्हारा संग ! _टिल्लन रिछारिया






















फागुन की यह पूर्णिमा और तुम्हारा संग !
बिना डोर मन उड़ रहा जैसे कोई पतंग !!

अधिक देर सुलगे नहीं दहके हुए गुलाब !
जाने फ़िर कब थम सका मधुगंधित सैलाब !!

रंगों का तूफ़ान है गोरे गाल गुलाल !
भौचक्की तू क्यों खड़ी गुलमोहर की डाल !!

जाने दे फ़िर आयेगी होली अगले साल !
अपने मन का कर लियो तू भी मेरा हाल !!