गुजरे तीन दिन ...बम्बई ( मुम्बई ) झुलस रही है __सपनों की देवी __दुःस्वप्नों की देवी बन गयी __वी.टी स्टेशन , मेट्रो सिनेमा , नरीमन पॉइंट , गेट - वे - ऑफ़ इंडिया ... ताज होटल ... चौपाटी चरम आतंकियों के निशाने बने रहे ...गुजरे तीन दिन ...२६-२७-२८ नवम्बर २००८ के ...ये तीन दिन... मुम्बई महानगर के बाशिंदों और इसे दिलो-जान चाहने वालों के लिए किस कदर रुलाने और तड़पाने वाले रहे ...! इस दर्द को वो ही समझ सकता है ...जिसने इस शहर की आबो - हवा में दो - चार ऋतुचक्र गुजारे हों !...इस नाचीज को ... इस दिलफरेब शहर ने ...एक जमाने में ...अपने आँगन में चंद साल गुजारने का खुशगवार मौका दिया था !
१९८० के दिसंबर के शुरुआती दिन थे...जब इस शहर की हिलोर ने अपने लपेटे में लिया __इलाका था__नरीमन पॉइंट __कम्पनी__इंडियन एक्सप्रेस __पत्रिका __हिन्दी एक्सप्रेस __सम्पादक __शरद जोशी __बैठक __एक्सप्रेस टावर ...दूसरा माला ....मेज से कागज़ फिसले तो गया सीधे समंदर में !...बाईं तरफ.... ओबेराय होटल का स्वीमिंग पूल !!...वही ओबेराय होटल ... जिसकी दिल दहलाने वाली तस्वीरें ...तीन दिनों से दिल - दिमाग को मथ रहीं हैं !...कहाँ गयी वो सुकूनपरस्त बंबई !
१९८० से ८७ तक मुम्बई में गुजरे मेरे खुशफहम दिन ...तमाम जोर देने के बाद इस बात की याद नहीं दिला पा रहे कि कभी ...खौफ का कोई कतरा भी मेरे जहन से गुजरा हो ।...सुबह खिलती खिलखिलाती , दोपहर जवान होती , शाम खुमार में डूबी , रात चढ़ते अल्हड ...और गहराते - गहराते... नशीली ... कुछ बहकी - बहकी सी ...और देर रात जब आपके आसपास सब अनजानें हों तो __आपकी हमदर्द !__आपकी अपनी ! ! आपकी अनन्य ! ! !__आपकी संगिनी ...आपकी रक्षा - कवच __ मुम्बई के इस स्वरूप के साक्षात्कार के लिए जरूरी है ...आस्था के चरम तक जाना और अपने अहं का तिरोहण !__मिटा दे अपनी हस्ती को ... ! साधना का यह पंथ कठिन नहीं ...बहुत आसान है __सिर्फ़ अपनी चाहत पर अपने अहं को कुर्बान करना होता है ...और सरल भाषा में बताएं __' हक ' के बजाय ' चाहत ' पर टिकना होता है __अपना विश्वास है __मनवांछित फल प्राप्त होता है !...कभी आजमा कर जरूर देखें ।
जिस मुम्बई ने अपने आँगन में ....हर किसी को अपने सपने रोपने की खुलेदिल आजादी दी ...उस मुम्बई का दुश्मन कौन है ?...अपनी बाँहें पसार कर देश - दुनिया की हर नस्ल - ओ - कौम को गले लगाने वाली मुम्बई का ये नया जागीरदार कौन है ? कौन है ...' सपनों की देवी ' को कुनबापरस्ती की जंजीरों में जकड़ने वाला कौन है ?...जो भी हो ...समय की रफ़्तार के आगे टिका कौन है ...!
तीन दिनों तक ...दहशत के जिस तूफ़ान ने मुम्बई के दिल - दिमाग और जज्बे को तार - तार किया उसके नक्श शायद ही कभी इस शहर के ख्यालों से मिट पायें । दिन गुजरेंगे , हालत बदलेंगे , शहर फ़िर चाहेकेगा ......!
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