शनिवार, 27 सितंबर 2008

थोड़ा कुछ अपने बारे में...

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर आलोकित चित्रकूट से कोई सात किलोमीटर उत्तर एक छोटा-सा क़स्बा _कर्वी नाम से है _जो अब _ चित्रकूट धाम कर्वी के नाम से जाना जाता है ._यही छोटा-सा क़स्बा कर्वी अपने बालमन और बालपन की क्रीडा भूमि रही और जो पहला प्ले-ग्राउंड मिला वो __रामलीला का ही था._शुरूआती दिनों शत्रुघ्न की भूमिका मिली बाद में लक्ष्मन की ._आलम यह था कि... धनुषयज्ञ की लीला में पिताजी [पुरुषोत्तम लाल रिछारिया] परशुराम की भूमिका में होते और ग्रैंड-फादर [पं प्यारेलाल रिछारिया ]_पेटुराजा के चरित्र में _क्या गजब का रूपक सजता _जबकि लिहाजन हम लोग शायद कभी-कभी ही आमने- सामने पड़ते हों ._उत्तर भारत के परिवारों में तब के दौर के बाप-बेटे के बीच संवाद के अवसर कम ही आते थे और पिता तो अपने पिता के सामने अपने बेटे से कम ही लाड-प्यार जताते थे । अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि _कैसा होता रहा होगा परसुराम लक्ष्मन संवाद ._चौदस की रात होती है धनुष यज्ञ की लीला कर्वी में .
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