शुक्रवार, 26 सितंबर 2008

यादों के सिलसिले...

यादों के सिलसिलों के मुहाने पर अपने होंने का अहसास _ यह अहसास भी अपने आप में अजब-सा अहसास है_अजब -सी दस्तक_ अजब-सा खुमार_कोई नाम है इस अहसास का या सब अनाम है__

नाम_ टिल्लन [ जो कानों ने सुना] जो आंखों ने देखा _ शिव शम्भू दयाल रिछारिया । आसपास जो आबोहवा और खनक थी उसमें _रंग, राग,रस,कवित्त,संगीत और रामलीला का खासा असर था जो अपने ऊपर भी छाता चला गया._जब कारवां आगे बढा तो ये ही सब जीवन के सफर में पतवार बने और जीवन का आधार भी.

5 टिप्‍पणियां:

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

रंग, राग,रस,कवित्त,संगीत और रामलीला का खासा असर हम भी देखना चाहेंगे। बस शुरू हो जाइए।
स्वागत है आपका यहाँ...।

Udan Tashtari ने कहा…

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.


डेश बोर्ड से सेटिंग में जायें फिर सेटिंग से कमेंट में और सबसे नीचे- शो वर्ड वेरीफिकेशन में ’नहीं’ चुन लें, बस!!!

अभिषेक मिश्र ने कहा…

Apni yaden hamare sath bantte rahein.

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

सार्थक सटीक और शानदार आलेख आपका हिन्दी चिठ्ठा जगत में हार्दिक स्वागत है . मेरी नई पोस्ट पढने आप मेरे ब्लॉग "हिन्दी काव्य मंच " पर सादर आमंत्रित हैं

Vineeta Yashsavi ने कहा…

blog jagat mai apka swagat hai