राजू मिश्र उर्फ़ ( बांदा की पत्रकारिता का ) नटवर लाल !...सन १९७२-७३-७४-७५ के सालों वाला बांदा !...उत्तर प्रदेश का साधारण सा एक जिला ... तब इसी जिले में शुमार होते थे ...चित्रकूट...राजापुर ( तुलसी दास का जन्मस्थान )...अब चित्रकूट खुद जिला बन गया है । इतिहास की तमाम करवटों के बीच हम पकड़ते हैं पिछली सदी के आख़री तीस साल !!
१९७०-७१-७२ का बांदा ...कवि केदार का बांदा ...चारो ओर धूम थी कवि केदार की !...कवि केदार कितने बड़े कवि थे ...ये तब हमलोग नहीं जानते थे ...हाँ इतना जरूर समझते थे कि जब इनसे इतने बड़े - बड़े कवि लोग मिलने आते हैं तो ये भी उतने बड़े तो होंगे ही ।...बाबा नागार्जुन , हरिवंश रॉय बच्चन , अमृत रॉय ...
बांदा में कवि केदार की अगुआई में तब ' प्रगतिशील सम्मलेन ' हो चुका था ...देश भर के तमाम साहित्य प्रेमी बांदा की मिट्टी के आतिथ्य का स्वाद ले चुके थे । कविता का एक नया तेवर अवतार ले चुका था ....कवि केदार के ओजस्वी व्यक्तित्व का असर समाज की सभी इकाइयों पर पडा । ...पत्रकारिता पर भी भरपूर असर पडा । कसबे के ...मध्ययुग , बम्बार्ड , विश्व प्रभाकर ...जैसे अखबारों में अक्स दिखने लगा ...और विकसित होने लगी पत्रकारिता में नयी पौध ...जन-चेतना की धार ...इसी धार और रफ़्तार से हम जैसे तमाम निकले ....! राजू मिश्र बांदा की इसी दौर की उपज हैं । ...बहुत घिसे गए ...बहुत रगड़े गए...बहुत तराशे गए ...जेब में छदाम नहीं लेकिन रुका कोई काम नहीं ...!
ये दौर ' रविवार '...' दिनमान ' ...' धर्मयुग ' जैसी पत्रिकाओं का उत्कर्ष काल था । ...जागरण,आज,भारत और बाद के दौर का...अमृत प्रभात इलाके के प्रभावी अखबार थे । ...कवि गोष्ठी वाले हमलोग पत्रकारों के लिए दोयम दर्जे के लोग हुआ करते थे ...टाइम्स ऑफ़ इंडिया के ...बी डी गुप्ता की तूती बोलती थी । ...ए के सहगल और रामेश्वर गुप्ता का एक धडा था ....हम लोग संतोष दादा गैंग के थे...हर जगह पिले रहते थे ...बम्बार्ड के विक्रमादित्य का खासा रुतबा था ....बड़ा चक्रव्यूह था ...लेकिन इसमें कोई अभिमन्यु कभी मारा गया ...क्योंकि यहाँ की महाभारत के भीष्म और कृष्ण की मुखर भूमिका में हमेशा कवि केदार हमेशा तत्पर रहे .