बुधवार, 31 दिसंबर 2008

एक कैलेंडर और पलटा !

एक कैलेंडर और पलटा...साल बदला ...कुछ नया ...कुछ बदलनें का हल्का - सा अहसास ...कुछ नए और अचीन्हें का भाव__दर्द और टीस का रेला पीछे छूटता हुआ...चमकते हुए कुछ तारे ...कुछ अव्यक्त सा !
अभी शोर है ...आतिशबाजी है...जोश और जांबाजी है ...सुबह तीखा सूरज निकलेगा ...आँखें चौधियायेंगी ...संयम और साहस का इम्तिहान होगा...बाजार,सरकार,समाज और सहकार सभी दांव पर हैं__अपनी भूमिका पहचान कर सबसे आँखे चार करना होगा __न डर कर ...न डरा कर __इंसानियत के दम पर हर शै से मुकाबला करना hogaa !

नई यात्रा पर !

पार्टी टाइम !

न्यू इयर..!

विदा २००८ !



स्वागत २००९ !

रविवार, 21 दिसंबर 2008

ताज फ़िर हुआ रोशन !

आज... २१ दिसम्बर की शाम...ताज फ़िर रोशन हुआ __आतंक की कालिमा धोता हुआ __२६ - २७ -२८ नवम्बर की यादों के नक्श पोंछते हुए __शहर के गमजदा मिजाज में जिंदगी और जोश के नए रंग बिखेरते हुए __ताज फ़िर मुस्कुराया !
दर्द को सहलाना ...उसे गाना ...गाते - गाते नये जज्बे जगाना...जिंदगी के चलने का नाम है __मंजिलें और भी हैं ...आसमान और भी हैं ....जिन्दगी में सफर के मकाम और भी हैं !
__ये न समझें कि समूचे मुम्बई की धड़कन फकत ताज ही है...लेकिन फुटपाथ से लेकर आसमानी ऊँचाइयों पर जीने वाले मुम्बईकर के लिए ....आन - बान - शान ...तो ' ताज ' ही है ! __साहिर साहब ने ...' हम गरीबों का उडाया है मजाक ...' इस ताज के बारे में थोड़े लिखा था ...वो तो आगरा में है ! इस ताज पर तो हर मुम्बईकर को नाज है .
__शहर नए साल की ओर कदम बढ़ा रहा है...कड़वी यादें धुंधलायेंगी...नया सवेरा नई रंगत लाएगा !

अमिताभ जी !

December 21st, 2008 at 2:42 pm

अमिताभ जी !
आज आप स्मृतियों में बहुत गहरे ‘ माता जी ‘ के पास होंगे __यों तो हर दिन उनकी यादों के बिना नहीं बीतता होगा …पर आज यादें कुछ ज्यादा ही घनीभूत होंगी __आज सुबह अखबारों में ‘ तस्वीर ‘ देखी तो स्मृतियाँ कौंध गयीं __जब कर्वी ( चित्रकूट ) में रहते थे तो अक्सर सुनते थे कि…तेजी जी आयीं थीं …चित्रकूट…जानकीकुंड में …पंजाबी बाबा के यहाँ गयीं .__बांदा…के नाते आप और आपके परिवार से यह इलाका सहज अपनापा मानता है __बच्चन जी से बांदा में एक - दो मुलाकातें याद हैं __तब …१९७१-७२ में ग़ेजुएशन के दौरान बच्चन जी के दशर्न प्राप्त हुए

__कविता प्रतियोगिता में अपने को भी बच्चन जी से पुरस्कार मिला __कविता की किताब थी ...बाद में और प्रत्याशी किताब में उनके आटोग्राफ लेने लगे …दोस्तों ने मुझे भी कहा __मैंने कहा…’ मैनें स्मृतियों में आटोग्राफ ले लिया है ! ‘ बांदा में अक्सर केदार बाबू ( केदारनाथ अग्रवाल ) के सौजन्य से बच्चन जी के सहज …अति सहज रूप के दशर्न मिलते रहे …छवियाँ स्मृतियों में दर्ज होती रहीं ….जो अभी भी कल की बातें लगतीं हैं __तेजी जी को सीधे - सीधे कहाँ देखा …याद नहीं ….हो सकता है कि ना भी देखा हो और स्मृतियों के विम्ब इतने सघन हों कि यथार्थ को भी मात दे रहें हों !

__अमित जी ये ही स्मृतियाँ सत्य हैं …शेष सब निस्सार है __राम - कृष्ण - सीता - मीरा को न हमने देखा न आपने …सिर्फ़ स्मृतियों का पुल ही तो है जो हमें उनसे जोड़ता है …अविभाज्य बनाता है ! बच्चन जी …तेजी जी …सांसारिक रूप से बेशक अमिताभ बच्चन के माता - पिता हैं ….पर स्मृतियों के लोक में किसके क्या - क्या नहीं !

__आपको रेडियो में दिया अपना एक इन्टरव्यू याद होगा जिसमें आपने जिक्र किया था किहो सकता है कि यथार्थ में आप अपने पिताश्री की मृत्यु पर …न रो पाऊं ….क्योंकि वह आप कहीं व्यक्त कर चुके हैं …. पूरा इन्टरव्यू अभी भी मुझे याद है !

__समय के प्रवाह में स्थूल तो बह जाता है…सत्व ….स्मृतियों में हमेशा अमर रहता है !

__ आज न जाने क्यों….आपसे अपनापा फूट रहा है….मिले …एक या दो बार __ वीर अर्जुन के ….अनिल नरेंद्र की बेटी के शादी में….सन…रहा होगा…१९९३-९४ ….तब आपसे गपशप भी हुयी थी , बेटी श्वेता भी थी आपके saath ….बम्बई में तो आपके घर…प्रती क्षा के सामने से अक्सर गुजरते थे …जुहू जाते समय …एक बार घर भी गए थे….डॉ रामकुमार वर्मा का पत्र लेकर …जाया जी मिलीं __तब मैं __धर्मयुग में तह…१९८०से ८७ तक बम्बई रहा….हिन्दी एक्सप्रेस (शरद जोशी ) करंट ( डॉ.महावीर अधिकारी)…आपको जब कुली का दौरान जब चोट लगी तो करंट में
था …धर्मयुग में भारती जी के साथ का साल था __१९८४-८५ …!

__परिवार में सभी को यथायोग्य !

सादर __टिल्लन रिछारिया !

मंगलवार, 16 दिसंबर 2008

बंबई ...सुबह चार बजे !

इलाका भुलेश्वर का ...सुबह से गुलजार...सुबह...यानी चार-सादे-चार बजे ! घड़ी-घंटों और शंख घ्वनि की गूंज...सुबह से बम्बई शुरू...झटके से उठिए वरना नल चला जाएगा ...नल तो वहीं रहेगा पानी चला जाएगा...बिना नहाये मन्दिर मैं गुजारा कैसे !__बंबई मैं तो हर चीज के लिए लाइन लगती है...यह बात समझ में आ चुकी है कि लाइन में लगे बिना यहाँ कुछ भी पाना कितना मुश्किल है...पहला चरण पूरा...दूसरे में हनुमान जी को हाजिरी...अब सवारी सड़क पर है...घंटों की टन-टन और महमहाते फूलों की खुशबू से भरी फूलवाली गली से गुजर गुजर कर अब सवारी सड़क पर है ...खान-पान की दूकानें खुल चुकी हैं...गरमागरम दूध और ताजी जलेबियाँ ...वादा पाव...आलू-पूरी...और तरह-तरह के स्वाद आपकी राह छेंकने की भरपूर कोशिश कर रहे hain ...पर क्या मजाल कि आपका दिल मचल जाए__मंगलवार और शनिवार तो हनुमान जी की कृपा से प्रसाद स्वरूप इतना मिष्ठान मिलता है कि फ़िर मन ही न करे और रोज...आज अभी भी तो हनुमान जी ने प्रसाद में बरफी दी है...हाँ...कुछ फरसाण हो जाए तो बात अलग है __बम्बई में नमकीन-तत्व को फरसाण बोलते हैं__हाँ...हनुमान जी मिठाई तो खिलाते थे पर मेहनत भी करवाते थे__चढावे में जो रुपये-पैसे चढ़ते ...उन्हें ....रूपये-आठ आने-चार आने और दस पैसे ...अलग-अलग करने होते....तो मंगल और शनिवार को कभी कतराते तो कभी अपने को दांव पर लगा ...मुद्रा निस्तारण कार्य सम्पन्न कर हनुमान जी और महंत जी का आर्शीवाद पाते ! __कभी ऐसा भी हुआ कि जब डेढ़ - दो रूपये बचे तो तुरत हनुमान जी को समर्पित कर देते ....इस आगाह के साथ कि अब आप ही सभालना ___और...घंटे-दो-घंटे में ...भाई साहबनुमा कोई ऐसा शख्श आता जो खूब खिलाता-पिलाता ( पिलाता को कुछ और पीना...पिलाना न समझें ) और जाते-जाते तीन बार पूछता ....और सब टीक हैं ना __अगर चेहरे पर जरा भी चाहत दिखाई दी तो __बीस-पचास की प्राप्ती अलग होती थी__तबके बीस रूपये का मतलब समझते हैं आप__तब बस का न्यूनतम टिकट 30 पैसे और लोकल ट्रेन का 25 था__तीन- साढ़े-तीन में बढिया भोजन और इतने मी ही सिनेमा का टिकट...फस्ट क्लास का....लोकल का पास हो और जेब में दो रूपये ....राजाबाबू बन घूमों बम्बई...! तब बीस-पच्चास की वकत hotee thee ....सात सौ तो तनख्वाह थी अपनी तब ... फ़ोर फीगर सैलरी का के सम्मान का ज़माना था ___मैंभी कहाँ चिल्लरों के चक्कर उलझ गया___वैसे खेल तो सब इन्हीं चिल्लरों के लिए हैं ! __बिन चिल्लर सब सून__सोचा था कि आपको आज अपने रास्ते से ....एक्सप्रेस टावर ले चलूँगा ....पर अब आज रहने देते हैं __कल चलिएगा ....थोडा फुर्त्ती से तैयार होइएगा !!!!!

शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008

जिन्दगी ...जंग ! तब की बम्बई न पहचाने इस रंग को !

इन दिनों बम्बई का मौसम …खुशनुमा और खनक भरा रहता है.__शाम हल्की सर्द …समन्दर के किनारे - किनारे चलें तो नमकीन झोंके खुमार में लें जाएँ …अमूमन ये झोंके शाम को साथ रहते ही थे !…जब अकेले निकालता था …एक्सप्रेस टावर से तो …एयर इंडिया की बिल्डिंग से ही समंदर का साथ पकड़ लेता था…आसमान पर होती सिंदूरी आभा …सांझ …सांवली होती हुई …. ‘ नेकलेस ऑफ़ बॉम्बे… ‘ दमक उठता… ! __जितना पी सकता था उतना पीता था__सांझ का सौन्दर्य !…ओबेरॉय के सामने से होते हुए एकदम किनारे तक …फ़िर समंदर के साथ - साथ … चर्चगेट से मरीन ड्राइव होते हुए …चौपाटी …चौपाटी तो सांझ ढलते ही रंग - बिरंगी रोशनियों की फुलवारी बन जाती है __शहर के बीच लोगों का सैलाब__पर इधर अपने और अपनों में खोये लोग ….कहीं दो बदन एक जान …कहीं सिर्फ़ हाथों में हाथ …कहीं कोई …मेले में अकेला…कहीं कोई …उलझनों का मेला ….! कहीं __ जोश , मदहोश , अफसोश …कैसे - कैसे लोग …कैसे -कैसे रंग __किसी की जिंदगी जंग ! …जी नहीं …तब के दौर की बम्बई ने जिंदगी को तमाम रंगों से सराबोर किया था __ पर जंग का रंग क्या होता है न कोई जानता था …और ना पहचानता था ! यहाँ तो तब ‘स्ट्रगल’ नाम का एक जीव हुआ करता था ….जो हमेशा ….मुस्कुराते और गुनगुनाते मिला करता था __मुसाफिर हूँ यारो…और आबोदाना ढूंढते हैं …! अजीब सी रूमानियत भरा होता था तब….स्ट्रगल…! !

गुरुवार, 11 दिसंबर 2008

बॉम्बे की बात ही अलग है !

बम्बई में अगर रहने का ठिकाना आराम से मिल जाए और यहाँ की तेज रफ़्तार जिंदगी में दिल रम जाए तो इससे बढ़िया और कोई शहर नहीं . तो ठिकाना तो मिल गया और दिल भी रम गया __दिल तो पहले से ही रमा था इस शहर के साथ __कभी सपनों में तिरता था यह शहर...मेरे दिलफरेब उस्ताद ने इस शहर की जो तस्वीर मेरे दिल - दिमाग में उतार रखी थी उसके मुताबिक ...बम्बई की सड़कें...क्या बात हैं__इतनी चिकनी कि यहाँ थूंको...तो मीलों फिसलता चला जाए...और इमारतें इतनी ऊँची कि __लोग ऊपरी मंजिल पर खड़े हो कर सूरज से सिगरेट जला लेते हैं ...बॉम्बे की बात ही अलग हैं ...दलीप कुमार , मीना कुमारी , पिरान ,जानीवाकर ,धरमिंदर ,महमूद ...एक - से एक बड़ा एक्टर ...अजब -गजब का खेल करतब ...जीवन का मेला है...क्या गजब का खेला है ...!__बम्बई का यह रूपक मेरे जहन में बचपन से चस्पा था ...यह रंग भरा था उस्त्त्द खलीफा ने __ये जनाब टेलर मास्टर थे और कर्वी (चित्रकूट) में हमारे घर के बाहरी हिस्से के एक कमरे में अपनी दूकान चलाते थे...जनाब पक्के जुमालेबाज थे और दुनियादारी के हर इल्म में माहिर...क्या मजाल कि आप उन्हें किसी मामले पर शिकस्त दें पायें...एक वाकिया है __राष्ट्रपति जाकिर हुशैन के इंतकाल की ख़बर ट्रांजिस्टर पर आ रही थी...'क्या हुआ ...क्या ख़बर है...'.... मैनें कहा __डॉ जाकिर हुशैन साहब का इंतकाल हो गया हैं ! '.....हाँ....यार बड़ा उम्दा डौक्टर था....' मैंने कहा ....खलीफा ....वो इंजेक्शन - आपरेशन वाले डौक्टर नहीं थे !'....अमां यार तुम कल - कल के लड़के क्या जानों ...बड़ा उम्दा डौक्टर था ...! '....अपने तर्क की मजबूती के लिए खलीफा ने कम-से-कम अपने आधा दर्जन रिश्तेदारों के नाम मय शहर और पूरे पते सहित गिना दिए.__इस बात पर मैंने उस दौरान __सबसे बड़ा तर्क__शीषर्क से लघुकथा लिखी थी !....बहरहाल ....बॉम्बे ...दिलकश है....लाजवाब है !

सोमवार, 8 दिसंबर 2008

मन्दिर में रहना...यानी आधी सधुक्कड़ी !

खूबसूरत ठिकाना मिला __ग्राउंड फ्लौर पर __हनुमान जी बिराजे थे__फस्ट फ्लौर पर __महंत जी की बैठक __सेकेण्ड फ्लौर पर __साधू - संतों का डेरा __ थर्ड फ्लौर पर हम लोग ...दरअसल यह जगह उन छात्रों के लिए सुरक्षित थी जो बाहर से यहाँ पढ़ने आते थे ...जहाँ हमें ठिकाना मिल गया है.__आते-जाते हनुमान जी की नजर ( हालांकि वो सर्वज्ञ हैं ) बच बचा लिए तो महंत जी ...'कबी आया ...किधर था ' फ़िर संगी-साथियों को जवाबदेही __'कहीं भी जाने का ...बता कर जाने का ....कबी आयेगा बराबर बताने का ....कुछ माँगता ...बताने का....जास्ती परेसान होने का नई ...'मन्दिर का रहना...यानी आधी सधुक्कड़ी__नहाना तो रोज पडेगा__देर तक सोने का सवाल ही नहीं ...सुबह चार - साढ़े - चार से चारों और घंटों और शंख बजाने की आवाजें...फ़िर हनुमान को हाजरी भी तो देनी है . कुल मिलाकर मन्दिर में रहने का अनुशासन...एक अलग तरह का आनंद !

रविवार, 7 दिसंबर 2008

बम्बई ! सात दिसम्बर 1980

सात दिसम्बर १९८० __२८ साल पहले आज के ही दिन… आज की मुम्बई ….और तब की … बंबई की दहलीज को स्पर्श किया था .नरीमन पॉइंट का ‘एक्सप्रेस टावर’ बना था नौकरी का ठिकाना और शुरुआती कुछ दिन ‘कल्याण’ से आना-जाना रहा…बाद में…कालबा देवी मन्दिर इलाके में ‘भूलेश्वर के पंचमुखी हनुमान मन्दिर’ में रहने का ठिकाना जम गया. यह मन्दिर फूलवाली गली के ठीक बगल में है.__यह सब अपने सर्व साधक ‘चित्रकूट’ नाम के विजिटिंग कार्ड का असर था. इससे सौभाग्यशाली विजिटिंग कार्ड मुझे अब तक नसीब हुआ . …एक्सप्रेस टावर के दूसरे माले से समंदर की लहरें गिनते-गिनते एक दिन ख़याल आया कि…चित्रकूट वाले सत्यनारायण शर्मा जी अक्सर चर्चा करते हैं __हमारे एक मामा वहाँ हैं…एक वहाँ …और एक भूलेश्वर के पंचमुखी हनुमान मन्दिर के महंत !…कहाँ है यह मन्दिर…खोजबीन की और पता करते-करते शाम को हनुमान जी को प्रणाम कर … महंत जी का ठिकाना पता कर… सहमते-सहमते चढने लगे सीढियां __सामने बुजुर्ग …. ‘मुझे सत्य…नारायण…मैं…चित्रकूट…से आया …’__कौन सत्य नारायण…मैं चित्रकूट को जानता हूँ आइये ‘….प्रणाम कर बैठा …आने का सन्दर्भ और कारण बताया ….जिस सहजता और आत्मीयता से महंत जी ने आश्रय और सत्कार दिया वह इस महानगर में मेरे लिए बड़ा संबल बना.